September 16, 2011

India Against Corruption : उधार की औकात पर लोकतंत्र से लड़ाई, कुल मिलाकर दो बार

कुल मिलाकर दो बार। पहली बार एक लाख बहत्तर हजार डॉलर। और दूसरी बार एक लाख सत्तानवे हजार डॉलर। दोनों को जोड़कर देखें तो कुल मिलाकर तीन लाख उनहत्तर हजार डॉलर। एक डॉलर यानी आज की तारीख में हमारे हिंदुस्तान के 46 रुपए। 3 लाख 69 हजार डॉलर को भारतीय मुद्रा में आज के हिसाब से तब्दील करके देखें तो कुल एक करोड़ 69 लाख 74 हजार रुपए। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को चुनौती देनेवाले आंदोलन के बाद, आपकी जानकारी के लिए, कम से कम अब तो यह बताना जरूरी हो गया है कि ईमानदारी की प्रतिमा और आंदोलन के प्रज्ञापुरुष के रूप में अचानक उभर कर सामने आए अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया (India Against Corruption fame ) को ये करीब पौने चार लाख डॉलर तो अमरीका से ही सहायता के रूप में हासिल हुए हैं।

यह तो हुई अधिकारिक रूप से विदेशी सहायता की बात। पता नहीं, कहां कहां से कितना क्या क्या अनधिकृत रूप से मिला भी या नहीं मिला, यह अपन नहीं जानते। मगर इतना जरूर जानते हैं कि हमारे देश की बहुत सारी सच में सामाजिक काम करनेवाली संस्थाओं को भी अपने ही देश में सहायता जुटाने में हजार किस्म की तकलीफें आती हैं। पर, ये दोनों पट्ठे ठेट अमरीका से भी इतना सारा माल निकाल ले आते हैं, यह अपने आप में बहुत बड़ी बात आपको भी जरूर लगती होगी। मामला आईने की तरह साफ है कि इन दोनों को वे सारे रास्ते पता है कि कहां से घुसकर क्या क्या करके कितना माल बटोरा जा सकता है।

पौने चार लाख डॉलर कोई छोटी रकम नहीं होती। हमारे देश में करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनको अगर आप एक करोड़ का आंकड़ा लिखने को कहेंगे, तो उनको बहुत दिक्कत आएंगी। लिखने के पहले कई कई बार उंगलियों के पोर पर इकाई दहाई सैकड़ा हजार की गिनती करेंगे। फिर कहीं जाकर लिख पाएंगे। और इस सवाल का जवाब तो आप और हम भी एक झटके में शायद ही दे पाएं कि एक करोड़ में कितने शून्य लगते हैं। इससे भी आगे जाकर कुछ ज्यादा ही सुनना हो तो जरा यह सत्य भी सुन लीजिए कि हमारे देश की कुल एक सौ पच्चीस करोड़ प्रजा में से एक सौ चौबीस करोड़ पचास लाख से भी ज्यादा लोग ऐसे हैं, जिनने एक साथ इतने सारे रुपए इस जनम में तो कमसे कम कभी नहीं देखे होंगे। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया (India Against Corruption fame ) इतने सारे रुपयों के मालिक होकर भी रेल्वे स्टेशनों के प्लेटफार्म पर सो कर आप और हम जैसों की बराबरी में खड़ा होने का स्वांग रचकर सभी को सहजता से स्तब्ध कर लेते हैं। इन दोनों की ‘कबीर’ नाम की एक संस्था है। बहुत सारे लोग तो शायद पहली बार ‘कबीर’ का नाम भी सुन रहे होंगे। वैसे, कुछ दिन पहले तक ‘कबीर’ को खैर, कोई जानता भी नहीं था। केजरीवाल और सिसोदिया की यह ‘कबीर’ हमारे देश के भूखे नंगों के कल्याण का स्वांग करती है और उसके ये दोनों कर्ताधर्ता अमरीका से सहायता ले आते हैं।

अमरीका दुनिया का सेठ है। और इतना तो आप भी समझते ही है कि हर कोई गरीब पर दया देख कर उसकी सहायता करता है, अमीर की नहीं। इसी से समझ जाइए कि सिसोदिया और केजरीवाल हमारे महान भारत का कौनसा चेहरा अमरीका के सामने पेश करते होंगे। फोर्ड फाउंडेशन के भारतीय प्रतिनिधि स्टीवेन सोलनिक ने भी कहा है कि सिसोदिया और केजरीवाल के एनजीओ ‘कबीर’ को उनकी पहली सहयोग राशि 2005 में 1,72,000 डॉलर की थी। जबकि दूसरी बार 2008 में 1,97,000 डॉलर दिए गए। जिसकी आखिरी किस्त 2010 में जारी की गई थी। अपने कबीर तो एक महान फकीर थे। पर उस पहुंचे हुए फकीर ने नाम पर अपनी गरीबी मिटाने का कमाल सिसोदिया और केजरीवाल ही कर सकते थे, और किया भी खूब।

यह वही अमरीका जो हमारे देश की संस्थाओं को सहायता देता है, और पाकिस्तान को भी पैसे ठेलकर हमारे खिलाफ जंग के लिए रह रहकर भड़काता रहा है। इसी अमरीका की आर्थिक सहायता पाकर पाकिस्तान हमारे बहादुर और देशभक्त सैनिकों को अकसर गोलियों का निशाना भी बनाता रहा है। कोई आपके खिलाफ हमले करने के लिए आपके दुश्मन को गोला बारूद मुहैया कराए और दूसरी तरफ आपको भी रोटी के दो टुकड़े ड़ालकर जिंदा रखने की नौटंकी करती रहे, ऐसे किसी भी दोगले शख्स से आप कोई सहायता लेंगे, इसके लिए किसी भी सामान्य आदमी का भी दिल कभी गवाही नहीं देगा, यह आप भी जानते हैं। लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया यह सब जानने के बावजूद अमरीका के सामने रोनी सूरत बनाकर अपने कटोरे में भीख भर ले आते हैं, यह गर्व करने लायक बात है या शर्म से डूब मरने लायक, यह आप तय कीजिए।

और जरा इस सत्य को भी जान लीजिए। गांधी और जेपी की बराबरी में पिछले दिनों अचानक प्रयासपूर्वक और योजनाबद्ध तरीके से खड़े कर दिए गए अन्ना हजारे की तेरह दिन की भूख के सहारे देश के आकाश में अचानक चमत्कार की तरह प्रकट हुए इन दो सितारों की चमक अमरीका से आई दया की भीख का कमाल है, यह किसी को पता नहीं था। सिर्फ सरकार को चुनौती दी होती तो समझ में भी आता। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र और उसकी समूची लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर ही सवाल खड़ा कर देने वाले इन सितारों की सच्चाई जैसे जैसे सामने आ रही है, देश के लाखों युवाओं का उन पर से विश्वास उठता नजर आ रहा है। इस विश्वास भंग की अवस्था की सबसे बड़ी असलियत यह है कि हमारे हिंदुस्तान में घर में किन्नर बिठाने की परंपरा नहीं है। किन्नरों की सबसे बड़ी कमजोरी यही होती है कि वे उधार की ताकत पर अपना तामझाम खड़ा करते हैं। क्योंकि उनकी अपनी कोई निजी ताकत नहीं होती।

केजरीवाल और सिसोदिया की जेब में धन भी अमरीका की उधारी का और आंदोलन में नेतृत्व करने के लिए अन्ना भी उधार के। अपना यह कहा किसी को बुरा लगा हो तो अपनी बला से। लेकिन बुरा लगाने से पहले अपनी एक विनम्र प्रार्थना यह भी है कि अन्ना को अपना जमूरा बनानेवाले इन दोनों मदारियों की इस असलियत पर भी आप जरा ईमानदारी से गौर फरमाइए कि अन्ना को धार पर लगाकर ही केजरीवाल और सिसोदिया ने खुद को समूचे देश में हीरो बनाने की कोशिश नहीं की। यह बात भी जिस किसी को गलत लगे, वे जरा इस तर्कपूर्ण तथ्य और सनसनाते सत्य पर भी जरूर ध्यान दें कि अन्ना का आंदोलन नहीं होता, तो इस देश में कितने लोग थे, जो इन दोनों मदारियों को जानते थे। और दिल पर हाथ रखकर जरा खुद से भी पूछ लीजिए कि क्या आप भी इन दोनों को इतना ज्यादा जानते थे ?

निरंजन परिहार (लेखक राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Courtesy: http://punarnavbharat.wordpress.com

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