January 16, 2011

दास्ता-ए-नेगी


बदल जायेगा ये जमाना, राहे नेकी पर चलने से तेरे
गलतफहमी है तेरी, खुद को समझ और बदल।
गर है तू गरीब तो
अधिकार नही जीने का, कुछ करने का तुझे।
गर है तू ईमानदार तो
अधिकार नही रहने का तुझे समाज मे।
गर है तू खिलाफ रिश्वत के तो
काबिल नही तू नजरो मे नौकरशाहो की।
गर है तू देश के कानून के भरोसे तो
तेरा जो है वो भी छीन लेगा जालिम जमाना सारा।
गर छोड़ दे ईमाने धर्म तो
दुनिया होगी मुटठी मे तेरी
और होगा नाम तेरा शरीफो की गिनती में।
गर ढाल ले तू खुद को साथ समय के तो
तेरे साथ होगा जमाना सारा
और सफलता होगी कदमो मे तेरी।
गहरी नींद सो रहा, मीठे सपनो मे खोया
जमाने की कूटनीति से बेखबर, तभी तो है नाकाबिल ‘नेगी’
नौकरशाहो और समाज की नजरो में।
अब तो उठ जा ‘नेगी’ वरना सब कुछ छीन लेगा
ये जालिम जमाना तेरा।

2 comments:

  1. rajendra negie ji
    bahut hi sateek avam sarthk prastuti
    ek karare vyng ke saath .
    sachhai ka aaina dikhaya hai aaj ke samaaj ka aapki utkrisht rachna ne
    bahut bahut badhai
    poonam

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  2. उम्र कम लगती है लेकिन आपकी लेखनी से एक परिपक्व रचना निकली है - हार्दिक बधाई

    "गर ढाल ले तू खुद को साथ समय के तो
    तेरे साथ होगा जमाना सारा"

    हाँ जमाना ऐसा है - ज्यादातर लोग ऐसे है - आपसे पूर्ण सहमत हूँ लेकिन समय ऐसा है या समय ऐसा कहता है इस बात से इत्तफाक नहीं रखता

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