November 29, 2010

गरीब की गरीबी के पीछे सबसे अहम रोल भ्रष्टाचार का

कहने को तो हमारा देश विकासशील देशो की श्रेणी मे है और सरकार भी प्रति व्यक्ति आय को देखकर कहती है कि हमारे देश की गरीबो की संख्या कम हो रही है परन्तु वास्तविकता मे गरीबी कितनी है, यह मालूम कैसे लगे। क्या सरकार के पास इसका भी कोई तरीका है। हमारे देश मे पता नही कितने घरो मे दिन मे एक बार ही चूल्हा जलता होगा कई घरो मे तो दो-दो दिन तक चूल्हा नही जलता। सरकार के पास इसका कोई रिर्कोड नही होगा। हो भी कैसे क्योकि सरकार का पेट तो कागजो से भरता है और कागजो मे गरीब है भी तो वो गिनती के होगे। हमारे देश के नेता से लेकर अध्किारी तक इतने ईमानदार है कि वे गरीबो का हाल जानना तो दूर उनको सही मजदूरी दिलाने के लिये कोई प्रयास नही करते। यदि कभी सरकार गरीबो के लिये कोई योजना निकालती है तो उसे कागजो मे ही गरीबो को आवटित कर दिया जाता है और सरकार को रिर्पोट भेज दी जाती है। सरकार भी कागजो को देखकर ही खुश हो जाती है कि चलो गरीबो का उद्वार हुआ। सरकार जब भी कोई योजना गरीबो के लिये निकालती है वो तो गरीबो तक पहुचते-2 नाम मात्रा की रह जाती है वो उफपर के लेवल से नीचे के लेवल तक मिठाई की तरह बटती हुई नीचे तक पहुचती है तो वहॉ जो कुछ शेष बचा होता है उससे कुछ गरीबो का भला कर दिया जाता है। गरीब आदमी को पता भी नही चलता कि हमारे लिये भी कोई योजना है पता भी चल जाता है तो वह कुछ नही कर सकता क्योकि वो कानूनी पचड़ो मे पड़कर अपनी जिन्दगी को नर्क नही करना चाहता। यदि कुछ पढ़ लिखे गरीब खड़े भी हो जाये तो उनकी सारी जिन्दगी सरकारी कार्यालयो के चक्कर काटते-2 गुजर जाती है। कोई गरीब कैसे अपनी आवाज उठाये, कैसे योजनाओ के बारे मे जाने। गरीब का तो हमेशा ही शोषण होता आया है और अब भी हो रहा है। कारखाने मिल आदि बहुत सी संस्थाओ मे गरीब व्यक्ति को सरकारी मानको के अनुरूप वेतन नही दिया जाता। कोई इसके खिलापफ आवाज उठाता है तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धेना ही पड़ता है साथ ही अन्य संस्थानो मे उसे काम नही दिया जाता क्योकि उसने मजदूरी के मानको को ध्यान मे रखकर आवाज जो उठाई है। मतलब सापफ है जो कुछ उसे दिया जाता है उसे उसी मे खुश रहना होगा वरना भूखो मरने की नौबत आ जायेगी। जिस कारण गरीब कुछ कर नही पाता उसे शान्त रहकर अपनी गरीबी पर रोना पड़ता है गरीबी मे ही जीवन गुजारना होता है। सरकार के अध्ीनस्थ अध्किारी जब संस्थानो मे छापा मारते है तो उन्हे संस्थान द्वारा अच्छी आवभगत कर रिश्वत के साथ अलविदा कर दिया जाता है। अध्किारियो को गरीबो से क्या लेना उन्हे तो माया की प्राप्ति हो गई बाकि भाड़ मे जाये गरीब। क्या इससे गरीबी कम होगी? कहने को ही सब गरीबो के साथ है लेकिन अपना काम बनता भाड़ मे जनता यही नारा गरीबो पर इस्तेमाल किया जा रहा है। किसी पार्टी के नेता को ले लो वो चुनाव के समय तो गरीबो के पैर छूता है उनका आर्शिवाद लेता है उनके हाथ से खाना खाता है लेकिन चुनाव के बाद गरीबो की सुननी तो दूर उनको देखना पसन्द नही करते। सरकार कितना भी प्रयास कर ले लेकिन जब तक देश से भ्रष्टाचार खतम नही होगा तब तक गरीबी का अन्त नही हो सकता। कभी कभी मुझे ‘मेरा देश महान सौ मे से निन्यानवै बेईमान’ यह कहावत बिल्कुल ठीक लगती है।

No comments:

Post a Comment