November 29, 2010

नारी उत्पीड़न और शोषण मे नारी की ही मुख्य भूमिका

भारतवर्ष मे शुरू से ही नारी को पूजनीय माना जाता है और माना जाता रहा है कि नारी ही किसी परिवार की रीढ़ होती है परन्तु फिर भी नारी का उत्पीड़न व शोषण होता हुआ आ रहा है, लेकिन क्यो? देश मे अनगिनत संस्थाऐ है जो महिला उत्थान के लिये प्रयासरत है और सरकार भी अनेकानेक प्रयास कर रही है परन्तु फिर भी अच्छा परिणाम नही मिलता। महिला उत्थान को समर्पित संस्थाएं महिलाओ को उनके अधिकार व शोषण के प्रति जागरूक कर रही है परन्तु अधिकतर गॉव-देहात मे नारियो की मानसिकता अभी भी वैसी ही है अर्थात पुरानी मानसिकता वाली महिलाऐ जिनकी वजह से आने वाली भावी नारियो के उत्पीड़न को बढ़ावा मिल रहा है क्योकि क्योकि वे चाहती है उनकी परम्परा चलती रहे या यह कह सकते है कि महिलाऐ ही महिलाओ के उत्पीड़न की जिममेदार है जिनके विचार पुरानी रिती रिवाजो वाले है जो अपनी बहू मे भी वो ही संस्कार देखना चाहती है जो उन्होने झेले है, कुछ इन शब्दो मे कह सकते है जो उन पर जो बीती है वे वही सब कुछ अपनी बहु पर करना चाहती है। वो महिला चाहती है कि मेरी बहु बहु बनकर ही रहे। इसके साथ ही पुराने रिति रिवाजो वाले टी0वी0 सीरियल भी महिला उत्पीड़न को बढ़ावा दे रहे है जिसे अधिकतर महिला ही देखती हुई मिल जायेगी और उसके किरदार का असर घरेलू महिलाओ मे धीरे-2 घर करने लगा है उन्हे पता भी चलता कि कब वह उस किरदार के जैसी हो गई। शहरो मे भी पुरानी मानसिकता वाली महिलाऐ भी कम नही है आये दिन समाचार पत्रो, न्यूज चैनलो मे उत्पीड़न सम्बन्धी खबर पढ़ने को मिल जाती है। महिलाओ की ये पुराने ख्यालो की सोच से सिर्फ देश के विकास को ही नही बल्कि स्वतन्त्र विचारो वाली महिला को भी कैद कर लिया है। ऐसी मानसिकता वाली महिलाऐ आज भी हर घर मे देखने को मिल जाएंगी। फिर भी आज का पुरूष महिला उत्थान को बढावा देने का प्रयास कर रहा है और उसको अपने बराबर का समझने की कोशिश कर रहा है परन्तु एक महिला जो रूढ़िवादी मानसिकता वाली है वह किसी ओर महिला आफिस जाते हुए या किसी महिला को बाहर काम करने को लेकर उसे बदनाम करने मे कोई कसर नही छोड़ती। छोटी छोटी बातो पर उसे बदचलन अवारा एवं अन्य गन्दी बातो से उसकी अवहेलना करना उनकी मानसिकता है। मेरे विचार से जो संस्थाऐ महिला उत्थान के लिये कार्य कर रही है उन्हे सर्वप्रथम महिलाओ की मानसिकता को बदलना होगा। यह आम बात है कि जब कोई भी महिला अपने घर के काम से खाली हो जाती है तो वह सिर्फ मोहल्ले या गॉव मे इकटठी होकर कुछ भी ऐसा कार्य नही करती जो समाज या देश के लिये लाभदायक हो बल्कि इधर की उधर करना उनकी आदत मे शामिल होता है। देखियो रि उसकी शादी को अभी साल भर नही हुआ वो आफिस भी जाने लगी आदि। शादी के बाद लड़का न हो तो ससुरालियो की नजर मे अपशगुन मानी जाती है और सास नन्द की नजरो मे उसकी कोई इज्जत नही होती। इन सब बातो को लेकर पुरूष भी खुद को अपमानित महसूस करता है और महिला का उत्पीड़न करना शुरू कर देता है। इसके पीछे सबसे बड़ा हाथ पुरानी मानसिकता वाली सासो का ही है। यदि एक महिला चाहे तो यह सब कुछ बदल सकता है लेकिन क्यो उठाये ये कदम क्योकि उन्हे तो अपनी परम्परा निभानी है। ऐसी परम्परा का क्या फायदा जो ना समाज के उत्थान मे है और ना ही घर के उत्थान में ।
यदि कोई विधुर विवाह करता है तो समाज उसे सम्मानजनक दृष्टि से देखता है लेकिन कोई विधवा विवाह करती है तो उसे समाज टेढ़ी नजरो से देखता है। आस पडोस की महिलाऐ उस विधवा को कोसती है कि डायन होगी तभी तो पहले पति को खा गई? इसके पैर ही अपशगुन है जो पहला पति मर गया। कहने का तात्पर्य यह है कि महिला ही महिला के जान की दुश्मन बनी हुई है वो किसी दूसरी महिला के आगे बढने पर खुश नही है।

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